पैसा हाय पैसा  

-यज्ञ शर्मा-

आज सारी दुनिया में पैसे को ले कर हाय−हाय मची हुई है। हमारा देश भी उस हायतौबा की गिऱफ़्त में है। जबसे पैसे का आविष्कार हुआ है, उसका महत्त्व बढ़ता ही गया। लेकिन, अब तो पैसा कमाना ही जिंदगी बन गया है। चोरी करो, डाका डालो, झूठ बोलो, धोखा दो, कुछ भी करो, पर पैसा कमाओ। जिसमें पैसा नहीं, वह काम नहीं करना चाहिए। आर्थिक उदारीकरण का सबसे बड़ा प्रभाव यही हुआ है। अब हर चीज़ का मूल्य पैसे में है।

 

आटे की कीमत पैसे में/दाल की कीमत पैसे में/नमक की कीमत पैसे में

नमकहलाली की कीमत पैसे में/नमकहरामी की कीमत पैसे में

 

अगर नमकहलाली की कीमत भी पैसा है और नमकहरामी की कीमत भी पैसा, तो नमकहलाल और नमकहराम में फर्क क्या हुआ? फर्क है सिर्फ पैसा। पैसा कम हो जाए तो हलाल को हराम होने में देर नहीं लगती। विश्वास से बड़ा है पैसा। ईमानदारी से बड़ा है पैसा। वफ़ादारी से बड़ा है पैसा। जी हां, आज पैसा हर योग्यता से बड़ा है।

 

भगवान बड़ा जिसका मंदिर बड़ा/पंडित बड़ा जिसकी दक्षिणा बड़ी

कर्मचारी बड़ा जिसकी तनखा बड़ी/सेठ बड़ा जिसका घोटाला बड़ा

नेता बड़ा जिसकी स्विस बैंक ब़ड़ा

 

आज हर चीज़ बड़ी हो सकती है, अगर पास में बड़ा पैसा हो। पंडित के दिमाग में ज्ञान नहीं है, चलता है। कर्मचारी के स्वभाव में ज़िम्मेदारी नहीं है, चलता है। सेठ के पास दिल नहीं है, चलता है। नेता के पास नीति नहीं है, चलता है। और कुछ हो न हो, पर पैसा हो तो सब चलता है। आज़ादी मिलने से पहले नेता राजनीति में जाते थे, देश सेवा करने। आज़ादी मिलने के बाद देश का माहौल बदल गया। देश की सेवा अपनी सेवा हो गयी। क्योंकि आज़ादी मिलने के बाद अचानक नेताओं ने देखा कि राजनीति की असलियत समझ में आ गयी। अचानक उन्होंने देखा कि यहां तो पैसे की इफरात है। तो, सूखी देश सेवा में क्या रखा है? पैसा कमाओ बाप! और देश सेवा का क्या? देश सेवा गई तेल लेने! देश की सेवा ही क्या, आज तो हमारे देश में हर सेवा तेल लेने भेज दी गयी है। क्योंकि−

 

पैसा देश से बड़ा/पैसा देशभक्ति से बड़ा

पैसा इन्सान से बड़ा/पैसा समाज से बड़ा

पैसा शब्द से बड़ा/पैसा साहित्य से बड़ा

पैसा ज्ञान से बड़ा/पैसा विवेक से बड़ा

 

अगर यहां कोई चीज़ यहां न गिनाई गयी हो तो आप देख लीजिएगा, पैसा उससे भी बड़ा निकलेगा। प्रेम बेकार है। भाईचारा बेकार है। इन्सानियत बेकार है। जो भी चीज़ धंधा नहीं, बेकार है। अच्छा हुआ हम 1947 में आज़ाद हो गये। अगर स्वतंत्रता संग्राम आज हुआ होता तो धंधे की तरह हुआ होता। आंदोलन करने से पहले नेता हिसाब लगाते− धरना देने के कितने पैसे? जेल जाने के कितने? जनरल डायर को गोली मारने के कितने? और फांसी चढ़ने के कितने? क्या आप हिसाब लगा सकते हैं क्रांति का बिगुल बजाने के लिए भगत सिंह को कितना पैसा मिलना चाहिए था? हाय पैसा!!

 

अगर स्वतंत्रता संग्राम भी धंधा बन जाता तो हमारे नेता आज़ाद हिंद डिपार्टमेन्टल स्टोर खोल लेते। वैसे जो आजादी मिलने के पहले नहीं खुला, वह मिलने के बाद खुल गया। आज राजनीति में पैसा फेंक कर देखिए, हर नाप का नेता मिलता है।

 

पैसा जब जरूरत से ज्यादा होता है तो अय्याशी के काम आता है। रिश्वत खिलाने के काम आता है। सुपारी देने के काम आता है। शिक्षा को भ्रष्ट करने के काम आता है। संस्कृति को नष्ट करने के काम आता है। पैसा वह सरौंता है जो शराफत का गला काटने के काम आता है।

 

पहले मजदूर मेहनत करता था तो उसे रोटी मिलती थी। आज पैसा मिलता है। पर उस पैसे से उसे रोटी मिलेगी इसकी कोई गारंटी नहीं मिलती। पैसे से भूख नहीं मिटती। लेकिन मजे की बात यह है कि पैसे की भूख उन्हीं को ज्यादा लगती है जो भूख से मर नहीं रहे होते। गुनाह गरीबी की बीमारी है। ज्यादा गरीबी के बोझ से दबा आदमी गुनाह की ओर मुड़ता है। ज्यादा अमीरी के बोझ से दबा आदमी भी गुनाह की ओर मुड़ता है। यानी अमीर हो कर भी आदमी गरीबी की बीमारी से बच नहीं जाता।

 

कहते हैं कि पैसा हाथ का मैल होता है। जानते हैं इसका असली मतलब क्या होता है− जिसके पास ज्यादा पैसे, उसके हाथ ज्यादा मैले।

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