एक नया सवेरा

-राजेश माहेश्वरी-

 

हिम्मत सिंह नाम का एक व्यापारी था जो अपनी एक मात्र संतान के लिए अच्छी व सुयोग्य वधु की तलाश कर रहा था। एक दिन वह अपने व्यापार के सिलसिले में एक शहर की ओर जा रहा था तभी शाम का वक्त हो गया और अंधेरा घिर आया। वह निकट के गांव में पहुँचा और पता करने पर उसे मालूम हुआ कि वहां पर रूकने के लिए कोई धर्मशाला या सराय नहीं है। वह इलाका काफी खतरनाक माना जाता था और अक्सर डाकू वहां से आया जाया करते थे। वह विकट परिस्थिति में उलझ गया था। उसे आगे और पीछे आने जाने में खतरा था जिससे गांव वालों ने आगाह कर दिया था। उसके इस वार्तालाप और चिंता को एक लड़की भांप गयी और उसने आकर उससे निवेदन किया कि आप आज रात हमारी झोपडी मे विश्राम कर ले। हिम्मत सिंह ने ऐसा ही किया और उस लड़की एवं उसके परिवार के प्रति आभार व्यक्त करता हुआ रात्रि विश्राम के बाद सुबह अपने गंतव्य की ओर रवाना हो गया।

 

हिम्मत सिंह को एक माह के बाद अचानक ही याद आया कि वह मोहरों की एक थैली उसी झोपड़े में जल्दबाजी में भूलकर आ गया है। यह ध्यान आते ही वह वापिस उस स्थान पर पहुँचता है और झोपडी में अंदर आते ही लड़की की माँ ने उसे पहचानते हुए कहा कि भईया बहुत अच्छा हुआ कि आप आ गये। आपकी मोहरों की थैली यही रह गयी थी। हमारे पास आपका कोई पता ठिकाना नहीं होने के कारण हम इसे आप तक भिजवाने में असमर्थ थे आपकी वह धरोहर मेरी बेटी कल्पना के पास सुरक्षित रखी है। उसकी बेटी ने आकर वह थैली वैसी की वैसी हिम्मत सिंह को सौंप दी। इस ईमानदारी से हिम्मत सिंह बहुत प्रभावित हुआ और उसने लड़की की सुंदरता, गुणों एवं उसके व्यवहार को देखते हुए अपने पुत्र का विवाह उससे करके उसे अपने घर की पुत्रवधू बना लिया।

 

 

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