सबके लिए आप ‘गुरूजी’ ही थे ओम प्रकाश सुथार

5 सितंबर - शिक्षक दिवस पर आलेख

डॉ.श्रीलाल मोहता

बीकानेर, राजस्थान

कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेच्छत रेसमा..ईशावास्योपनिषद के इस श्लोक को अपने जीवन का मूलमंत्र बनाकर आजीवन पठन-पाठन और सीखने-सीखाने के लिए कर्मरत-सेवारत रहने वाले प्रख्यात लोक कला मर्मज्ञ, साहित्यकार, रंगकर्मी, शिक्षाविद और मौखिक इतिहास विज्ञ स्मृतिशेष डॉ. श्रीलाल मोहता की विराट और गहरी ज्ञान निधि से हर तृष्ण जिज्ञासु मन की तृष्णा शांत हो जाती थी। डॉ. मोहता ने ‘गुरुजी’ शब्द को व्यावहारिक स्तर पर चरितार्थ कर दिया था। वह अपनी विशिष्ट ज्ञान निधि के साथ सबके लिए इतने सहज और सरल रूप में उपलब्ध रहते थे कि हर जिज्ञासु उनके साथ निःसंकोच विचार अभिव्यक्ति कर सकता था। विषय चाहे जो भी हो डॉ. मोहता का शैक्षिक, लोक ज्ञान एवं मौखिक इतिहास इतना तथ्यपरक था कि सब की जिज्ञासाओं का सकारात्मक मार्गदर्शन होता था। इसी विशेषता के कारण उनके सभी शिष्य उन्हें ‘गुरूजी’ से ही संबोधित कर सम्मान देते थे। इसलिए वह हर जिज्ञासु के लिए ‘गुरुजी’ ही थे।

डॉ. मोहता का जन्म 30 अगस्त 1943 को प्रख्यात मनीषी एवं चिंतन डॉ. छगन मोहता के घर हुआ था। आपने राजस्थान विश्वविद्यालय से हिन्दी में स्नातकोत्तर एवं पुस्तकालय विज्ञान में स्नातक करने के पश्चात् इसी विश्वविद्यालय से ‘नव-लेखन और नरेश मेहता: व्यक्तित्व तथा कृतित्व’ विषय पर पीएचडी की। आप बजसि रामपुरिया महाविद्यालय, बीकानेर से उप-प्राचार्य व अध्यक्ष, हिन्दी विभाग पद से सेवानिवृत हुए। बाल्यकाल से प्रौढ़ावस्था तक जीवन की बहुत-से उतार-चढ़ाव भरी डगर से अपने लिए अनुभव-मणिकाएं और अजस्र सहनशीलता एकत्रित करते हुए वे निरंतर सृजनमार्ग पर कर्मशील बने रहे। इन्हीं अनुभवों एवं निरंतर सीखते रहने की विशिष्टता के बल पर ही उनका व्यक्तित्व बहुविज्ञता के साथ गढ़ता गया। इसी आधार पर बहुविज्ञ व्यक्तित्व में साहित्यकार, लोककला साधक, इतिहासविज्ञ, शिक्षाविद एवं प्रौढ़ शिक्षाकर्मी, संस्कृतिकर्मी, बहुभाषाविज्ञ, जाने-माने शतरंज खिलाड़ी, सिनेमाविज्ञ आदि-आदि ज्ञाननिधियों का गहरा पारावार था।

डॉ. मोहता ने अपने सार्थक प्रकाशनों यथा सांस्कृतिक गाथाएं, मथेरण कला और रंगों की कहानी, निज आतम मंगल रूप सदा, लोक का आलोक, मरू-संस्कृति कोश, आरसी आगै हाथ पसारयां फुटरापो, राजस्थान का आंचलिक परिदृश्य, गणगौर गाथा, शब्द साधना, संगीत: संस्कृति की प्रकृति, वदति तुलसीदास और सद्यप्रकाशित तुलसी वृंदावन सरीखी पुस्तकों एवं मेड़तणी मीरां, भवतारिणी हे गंगा आदि के माध्यम से शैक्षणिक एवं लोक एवं साहित्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय अवदान दिया। इसके साथ ही डॉ. मोहता ने शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार एवं कला-साहित्य से जुड़ी विभिन्न संस्थाओं यथा बीकानेर प्रौढ़ शिक्षण समिति, बीकानेर, राजस्थान प्रौढ़ शिक्षण समिति, जयपुर, जन शिक्षण संस्थान, बीकानेर, प्रज्ञा परिवृत्त, उरमूल सीमांत, बज्जु, अजित फाउण्डेशन, परम्परा, श्रीसिद्धांत फाउण्डेशन, बीकानेर आदि शामिल है।

इसी के साथ आप केन्द्रीय साहित्य अकादमी, नई दिल्ली के राजस्थानी साहित्य के निर्णायक मंडल के सदस्य और महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय, अजमेर और जयनारायण विश्वविद्यालय, जोधपुर के पूर्व शोध निदेशक भी रहे। आप की लेखनी के संदर्भों में शेखावटी बोध के दो अंकों में लोक संस्कृति विषयक आलेखों का प्रकाशन, देश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेख एवं रचनाओं का प्रकाशन, दूरदर्शन एवं आकाशवाणी पर वार्ताओं और साक्षात्कारों का प्रसारण, पंजाबी, ऊर्दू और गुजराती की चर्चित रचनाओं का हिन्दी अनुवाद, हिन्दी, राजस्थानी एवं गुजराती भाषा में अनुवाद कार्य, साप्ताहिक मरुद्वीप का सम्पादन, ‘क’ पत्रिका के अतिथि संपादक व मासिक पत्रिका ‘विकल्प’ के सम्पादन, संगीत अकादमी, राजस्थान और परम्परा, बीकानेर के साथ लोक एवं शास्त्रीय कला-साहित्य पर विभिन्न राज्य स्तरीय प्रकाशनों और राजस्थान पत्रिका, बीकानेर के संस्करण में ‘लोकरंग’ स्तम्भ का दो वर्षों से अधिक लेखन अनुभव आदि प्रमुख हैं।

आपको भारतीय संस्कृति संसद, कोलकाता द्वारा लोककला के क्षेत्र में विशिष्ट सांस्कृतिक सम्मान, पद्मा बिनानी फाउंडेशन, मुम्बई का सम्मान, प्रेरणा प्रतिष्ठान सम्मान, श्यामलाल दम्माणी सम्मान, बीकानेर गौरव सम्मान, सार्दुल रिसर्च इंस्टीट्यूट से टेस्सीटोरी सम्मान तथा राव बीकाजी संस्थान से पं. विद्याधर शास्त्री, मरुधरा कोलकाता द्वारा संस्कृति-संरक्षक सम्मान आदि सम्मानों से सम्मानित भी किया गया। कोविड-19 महामारी ने 16 मई, 2021 को भले ही उनके देहिक स्वरूप को हमसे छीन लिया हो लेकिन उन विराट और सहृदयी शिक्षक डॉ. श्रीलाल मोहता ‘गुरुजी’ का पुण्य-आशीर्वाद हम सबके साथ हमेशा सदैव बना रहेगा। हमें अपने कर्तव्य मार्ग पर सदैव कर्मरत रहने की प्रेरणा देता रहेगा  शिक्षक दिवस के पावन अवसर पर डॉ.श्रीलाल मोहता ‘गुरुजी’ की पावन स्मृति को हमारा शत-शत नमन है। (चरखा फीचर)

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