युवाओं की पहल से कामयाब होता टीकाकरण अभियान

कोरोना टीकाकरण पर सकारात्मक पहल

रूबी सरकार भोपाल, मप्र

कोरोना से बचाव का अभी एक मात्र साधन टीका है। नीति आयोग के दिशा-निर्देश पर टीके के प्रति भय और भ्रांतियां दूर करने शहर के पढ़े-लिखे युवा शोधार्थी मध्य प्रदेश के आकांक्षी जिलों के सुदूर गांव में पहुंचकर ग्रामीणों को कोरोना से बचाव के टीके के बारे में विस्तृत जानकारी दे रहे हैं। इसके लिए वह दीवार लेखन और चित्र के माध्यम से “सुरक्षित हम, सुरक्षित तुम” अभियान के तहत पिछले दो महीने से उनके साथ काम कर रहे हैं। अपने साथ गांवों के युवाओं को भी इस अभियान से जोड़ रहे हैं और इस तरह शोधार्थी युवाओं ने सौ फीसदी टीकाकरण करवाने में कामयाबी हासिल कर ली है। टीके के साथ ही वह मास्क, सामाजिक दूरी बनाए रखने, बार-बार साबुन से हाथ घाने और घर के आस-पास सफाई रखने का प्रशिक्षण भी ग्रामीणों को दे रहे हैं।

दरअसल, जब कोरोना महामारी की दूसरी लहर से दस्तक दी, तो ग्रामीण इसके प्रति लापरवाह थे। उन्हें यह लग रहा था, कि यह शहर के लोगों पर हावी होगा। चूंकि वह प्रकृति के साथ मिलजुल कर रहते हैं, इसलिए यह बीमारी उन्हें नुकसान नहीं पहुंचायेगा। लेकिन इस दौरान पलायन पर जाने वाले लोग गांव वापस आये और साथ में यह बीमारी भी ले आये। फिर तो गांव में डर, भ्रम, बीमारी को छिपाने का जो दौर शुरू हुआ, उससे ग्रामीणों के जान-माल का बहुत नुकसान हुआ। वह इसे दैवीय प्रकोप मान कर पूजा-पाठ, टोने-टोटके इत्यादि पर ज्यादा भरोसा करने लगे। बीमारी को भगाने की जो असली वजह हो सकती है, उस पर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया।

शहरों में लॉकडाउन लगा था और स्वास्थ्य कर्मियों की उन तक पहुंच नहीं थी। ग्रामीणों के साथ स्वास्थ्य कर्मियों का इससे पहले कोई जुड़ाव नहीं था, लिहाजा वह उनकी बातों पर भरोसा नहीं कर पा रहे थे, उल्टे उनसे उलझ जाते थे। उन्हें देखकर दरवाजा बंद कर लेते थे। ऐसे में नीति आयोग को लगा, कि जो सदियों से ग्रामीणों को स्वावलंबन के लिए काम कर रहे हैं, ऐसे स्वयंसेवी संस्थाओं को जोड़ा जाये, ताकि कोई सकारात्मक परिणाम निकले। इसे ध्यान में रखते हुए नीति आयोग ने एनजीओ और स्वयंसेवी संगठनों को पत्र लिखा और संस्थाओं ने पत्र के अनुपालन में पढ़े-लिखे युवाओं को गांव जाकर वहां के लोगों को समझाने की चुनौती दी। युवा गांव जाकर ग्रामीणों को विश्वास में लेकर इस महामारी को खत्म करने में उनकी मदद करने लगे।

 

इस तरह बहुत सारे युवाओं ने इस चुनौती को स्वीकार किया और ग्रामीणों के बीच काम करने लग गये। इसी कड़ी में एक संस्था पीरामल फाउंडेशन ने कुछ युवाओं को तैयार कर उन्हें मध्यप्रदेश के उन गांवों में भेजा, जिसे केंद्र सरकार ने आकांक्षी जिलों के रूप में चुना है। जहां लोग पूरी तरह खेती पर आश्रित हैं या फिर रोजगार के लिए पलायन करते हैं और लॉकडाउन के बाद गांव वापस आये थे। जब इन युवाओं ने ग्रामीणों को प्रेरित किया, तो धीरे-धीरे इनकी मुश्किलें कम होने लगी। ग्रामीण उनके साथ बातचीत करने को तैयार हो गये। यहां तक उनके कहने पर टीके लगाने को भी तैयार हो गये। इसमें भी सबसे पहले गांव के युवा सामने आये। अपने घर के बच्चों से प्रेरित होकर बुजुर्ग भी टीके लगाने को राजी हो गये।

 

सबसे पहले फाउंडेशन ने सुरक्षित हम, सुरक्षित तुम अभियान के तहत विदिशा जिला के लटेरी विकास खण्ड में अनिता, मीना और मदन मोहन को वॉलिंटियर्स बनाकर भेजा। इन युवाओं का नेतृत्व सुबोध मण्डलोई ने किया। इन्होंने सबसे पहले इस विकासखंड के ग्राम कोलू खेड़ी और खेड़ा को चुना। क्योंकि यह गांव विदिशा मुख्यालय से करीब सौ किलोमीटर दूर है और इन ग्रामीणों का शहर के चिकित्सकों पर कम और टोना-टोटके पर ज्यादा भरोसा था। उन्होंने घरों में घूम-घूम कर लोगों को टीकाकरण के प्रति भय और भ्रम को खत्म करने का प्रयास किया और ग्रामीणों को टीके के लिए राजी किया। अनिता ने कहा, कि इन लोगों ने स्थानीय भाषा में ग्रामीणों को समझाया, कि अभी इस बीमारी के इलाज के लिए कोई दवा नहीं है। सिर्फ टीके से हम रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा सकते हैं, जो इस बीमारी के साथ लड़ने में काम आयेगा।

 

इसी तरह अन्नपूर्णा, नूतन, श्रुति, आमिर खान, बनारसी और प्रीति ने डोडखेड़ा ग्राम पंचायत के आस-पास लगभग दर्जन भर गांवों में मोर्चा संभाला और यहां के करीब एक हजार परिवारों को कोविड के खतरे से आगाह किया और उन्हें टीके के प्रति जागरूक किया। इन लोगों ने यहां लोगों के घरों की दीवारों पर उनकी अनुमति से नारे लिखे। जिसे आते-जाते ग्रामीण पढ़ें और इससे प्रभावित हों। इस संबंध में समाजसेवी रामबाबू कुशवाहा ने कहा, कि हम लोगों ने बैठकर नारे बनाये- “जन-जन की पुकार, टीका ही है कोरोना का सच्चा उपचार,” “चलो चलकर टीका लगाये, देश के प्रति फर्ज निभाये” जैसे नारों से इन गांवों के दीवारों को पाट दिया।

 

जब ग्रामीणों से टीके के प्रति भय और भ्रम के बारे में पूछा गया, तो कोलूखेड़ा गांव की प्रीति बाई ने बताया, कि हम लोगों ने सुना था, कि यह जो बीमारी है, यह दैवीय प्रकोप है और टीका लगाने से यह बीमारी खत्म नहीं होगा, बल्कि आदमी खत्म हो जायेगा। वह जिंदगी भर के लिए अपाहिज हो जाएगा। अब लग रहा है, यह सब अफवाह था। अगर भईया लोग गांव नहीं आते, तो हम लोग घर में झाड़-फूंक से इसे ठीक करने की कोशिश करते रह जाते और न जाने कितनों की जान इस तरह चली जाती। प्रीति ने कहा, शुरू में गांव के लोग इन्हें देखकर दरवाजा बंद कर देते थे, लेकिन हमारे परिवार के बच्चों ने उनका स्वागत किया, इनसे बात की। जो कुछ भईया लोग कह रहे थे, उसे सुना और हम लोगों को समझाया। जब 18 से अधिक उम्र वालों को टीका लगाना शुरू हुआ, तो सबसे पहले घर के बच्चों ने ही टीका लगवाया। फिर जब हम लोगों ने देखा, कि बच्चे तो स्वस्थ हैं, इनकी तबीयत खराब नहीं हुई, फिर 15 दिन देखने के बाद हम लोगों में हिम्मत बढ़ी। इसमें जितनी भूमिका फाउंडेशन का है, उतना ही हमारे घर के बच्चों का भी है। अगर वह आगे नहीं आते, तो शायद हम लोग कभी भी इन बाहरी युवाओं से घुल-मिल नहीं पाते।

 

इस तरह ग्रामीणों का बड़ा नुकसान होने से बच गया। क्योंकि विदिशा के गांवों में भी कोरोना फैला और काफी लोगों की जान भी गई। लेकिन हमें समझाने वाला कोई नहीं था। वहीं डोंडखेड़ा ग्राम पंचायत के 37 वर्षीय पवन मीना बताते हैं, कि हमारे पंचायत में सभी को पहली खुराक मिल चुकी है और करीब 90 फीसदी लोगों को दूसरी खुराक भी मिल चुकी है। पवन ने बताया, इस पंचायत में अधिकतम मीना जाति के लोग हैं। एक हजार परिवार में तीन-चार सौ अन्य जाति के हैं। उसने कहा, कि इस पंचायत में आदमी से ज्यादा औरतें टीके लगवाने से डरती थीं और वही पुरुषों को भी टीका न लगवाने के लिए कहती थीं। पुरुष तो कुछ पढ़े-लिखे हैं और कुछ बाहर जाकर काम करते हैं, इसलिए कोरोना के बारे में थोड़ा बहुत जान गये थे, लेकिन गांव की औरतें बहुत डरी हुई थीं। अब सभी का डर खत्म हो गया है, तभी करीब सौ फीसदी टीकाकरण भी हो चुका है।

 

बहरहाल, युवाओं के इस पहल ने विदिशा ज़िले के इस गांव को टीकायुक्त तो बना दिया है, लेकिन अभी भी देश के ऐसे कई गांव हैं, जहां टीका के प्रति लोगों में भ्रांतियां हैं, जिन्हें दूर करने की आवश्यकता है। टीकाकरण में एक करोड़ का आंकड़ा पार कर लेना यक़ीनन बहुत बड़ी उपलब्धि है, लेकिन इस अभियान में यदि देश के सुदूर ग्रामीण क्षेत्र पिछड़ गए तो उपलब्धि के मायने अधूरे रह जायेंगे। पोलियो अभियान की तर्ज़ पर फिर से इस नारा को ज़िंदा करना होगा “एक भी व्यक्ति छूट गया, समझो सुरक्षा चक्र टूट गया” (चरखा फीचर)

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